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Dr shanti swarup bhatnagar

डॉ शांति स्वरुप भटनागर जीवन परिचय | Shanti Swarup Bhatnagar Biograbhy in Hindi - 

 डॉ शांति स्वरुप भटनागर भारत के महान वैज्ञानिक और रसायनज्ञ थे उन्होंने देश के औद्योगिक शोध को आगे बढानें में महत्वपूर्ण कार्य किया | डॉ भटनागर को  भारत में अनुसन्धान और प्रयोगशालाओं का जनक माना जाता है, उन्होंने भारत में  राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण  भूमिका निभाई  | डॉ शांति स्वरुप भटनागर के नेतृत्व में काउन्सिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR ) के स्थापना की गई और वे भारत के विश्वविद्यालय अनुदान योग (UGC)  के पहले अध्यक्ष भी रहे हैं | देश की आजादी के बाद डॉ होमी जहाँगीर भाभा , विक्रम साराभाई , डॉ मोक्षगुन्डम विश्वेश्वरैया, प्रशांत चन्द्र महालनोबिस जैसे वैज्ञानिकों के सांथ देश में विज्ञान और प्रोद्योगिकी को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण कार्य किया |

डॉ शांति स्वरुप भटनागर का जन्म और परिवार Shanti Swaroop Bhatnagar Birth and Family -

शांति स्वरुप भटनागर का जन्म अंग्रेजी शासनकाल में 21 फरवरी 1894 में शाहपुर (वर्तमान पकिस्तान के पंजाब प्रान्त ) में एक हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ | इनके पिता का नाम परमेश्वर सहाय भटनागर था | जब ये मात्र 8 माह के थे तभी इनके पिता परमेश्वर सहाय का देहांत हो गया |  इनका लालन पालन इनके नाना ने किया जो एक इंजीनियर थे | इनके ऊपर नाना का बहुत प्रभाव पड़ा और ये बचपन से खिलोनों में विज्ञान खोजा करते थे |

डॉ शांति स्वरुप भटनागर की प्रारम्भिक शिक्षा

इनकी प्रारम्भिक शिक्षा सिकंदराबाद (बुलंदशहर) में हुई | 1911 में लाहौर के  'दयाल सिंह कालेज' में दाखिला लिया यहाँ उन्होंने करामाती नामक नाटक लिखा जो उर्दू भाषा में था | सरस्वती स्टेज सोसायटी ने 1912 में इस नाटक के अंग्रेजी संस्करण को सर्वश्रेष्ठ नाटक का पुरस्कार प्रदान किया | दयाल सिंह कालेज आजादी के बाद नई दिल्ली में स्थापित किया गया | शांति स्वरुप भटनागर ने पंजाब यूनिवर्सिटी से 1913 में इंटरमीडिएट और लाहौर से 1916 में BSc. और 1919 रसायनशास्त्र से MSc. परीक्षा पास की |

दयाल सिंह कालेग ट्रस्ट ने शांति स्वरुप भटनागर को  उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की जिसकी मदद से उन्हें इंग्लैंड के युनिवर्सिटी कालेग लन्दन में पढने का मौका मिला और 1921 में डॉक्टर ऑफ़ साइंस (D.Sc.) की उपाधि प्राप्त की | उन्हें ब्रिटिश वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान विभाग ने 250 पोंड सालाना फैलोशिप प्रदान की | वे 1921 में इंग्लैंड से भारत वापस आ गए |


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डॉ शांति स्वरुप भटनागर का प्रराम्भिक केरियर 

लन्दन से भारत वापस आने के बाद डॉ शांति स्वरुप भटनागर ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU)  में 3 वर्षों तक प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य किया | उस समय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय  स्थापित ही हुआ था | डॉ भटनागर ने विश्वविद्यालय के कुलगीत की रचना कर सबको यह बतला दिया की वो एक वैज्ञानिक के सांथ-सांथ अच्छे कवी भी हैं | बनारस में तीन वर्ष बिताने के बाद वे पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर चले गए | यहाँ उन्हें विश्वविद्यालय में फिजिकल केमिस्ट्री का प्रोफ़ेसर और रासायनिक प्रोयोगशाला का निदेशक बनाया गया और यहाँ रहकर उन्होंने कई शोध कार्य किये | यहाँ डॉ भटनागरने  इमल्शन और कोलाइड्स के सांथ इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री पर रिसर्च और शोध का कार्य किया |  डॉ शांति स्वरुप भटनागर ने के.एन. माथुर के सांथ मिलकर मेग्नेटो-केमिस्ट्री रिसर्च पर कड़ी मेहनत की जिसमें रसायनों पर चुम्बकीय प्रभावों का अध्यन किया गया  | 1928 में इन दोनों ने मिलकर भटनागर- माथुर मैग्नेटिक इन्टरफेरेंस बैलेंस का अविष्कार किया |

डॉ शांति स्वरुप भटनागर का प्रोफेसनल कैरियर

डॉ भटनागर ने अपने कैरियर में कई औद्योगिक समस्याओं का हल निकाला | रावलपिंडी के एक आयल रिफाइनरी कम्पनी को ड्रिलिंग के समय ड्रिल होल में जाम की समस्या का सामना करना पड रहा था | डॉ. भटनागर ने कोलोइड्स केमिस्ट्री की सहायता से कम्पनी की इस समस्या का हल निकाला | कम्पनी डॉ. भटनागर से इतनी प्रभावित हुई की उसने पेट्रोलियम के क्षेत्र में रिसर्च हेतु 15 लाख रूपये अनुसन्धान हेतु देने का प्रस्ताव किया | डॉ. भटनागर ने स्वयं के लिए कोई भी लाभ ना लेते हुए विश्वविद्यालय के माध्यम से पेट्रोलियम उत्पादों में सुधार हेतु इस राशी का प्रयोग कर कई शोध कार्य किये | वे 1921 से लेकर 1940 तक विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसर |

डॉ शांति स्वरुप भटनागर ने विक्रम साराभाई, होमी जन्हागीर भाभा  जैसे कई महान वैज्ञानिकों के सांथ मिलकर भारत में विज्ञान और प्रौधोगिकी की आधारशिला रखी | उन्होंने कई युवा होनहार  वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन भी किया | उन्होंने नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन (NRDC) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |

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डॉ शांति स्वरुप भटनागर की उपलब्धियां –

विज्ञान के क्षेत्र में उनके कार्यों को देखते हुए देश-विदेश में उन्हें कई पुरस्कार और उपाधियाँ मिलीं | स्वतंत्र भारत में वह भारतीय रसायन सोसाइटी , राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष रहे |  डॉ शांति स्वरुप भटनागर के नेतृत्व में काउन्सिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR ) के स्थापना की गई और वे भारत के विश्वविद्यालय अनुदान योग (UGC ) के पहले अध्यक्ष भी रहे हैं | उनके द्वारा भारत में  12 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई | विज्ञान और अभियांत्रिकी क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 1954 में पद्म भूषण से सम्मानित किया |

डॉ शांति स्वरुप भटनागर का देहांत | Death of Dr. Shanti Swaroop Bhatnagar -

भारत के इस महान वैज्ञानिक डॉ शांति स्वरुप भटनागर की मृत्यु 1 जनवरी 1955 को दिल का दौरा पड़ने से 61 वर्ष की आयु में हुई | देश को डॉ शांति स्वरुप भटनागर की मृत्यु से अपार क्षति हुई और विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता |उनकी मृत्यु के पश्चात उनके योगदान को देखते हुए CSRI  1958 से प्रतिवर्ष विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र  डॉ शांति स्वरुप भटनागर  पुरस्कार देता आ रहा है जिसका उद्देश्य देश की प्रतिभाओं  को सामने लाना है | 1994  में उनकी याद में भारत सरकार ने 100 पैसे का भारतीय डाक टिकट जारी किया गया | 

नोट- डॉ शांति स्वरुप भटनागर के जीवन परिचय के बारे में इस आर्टिकल  में  दी गई जानकारी इन्टरनेट , पत्र - पत्रिकाओं पर आधारित हैं |