Rajkumari, rakshas, bandar aur chor ki kahnai | राजकुमारी , राक्षस, चोर  और बन्दर की कहानी
राजकुमारी और राक्षस की कहानी

राजकुमारी , राक्षस, चोर  और बन्दर की कहानी | Rajkumari, rakshas aur chor ki kahnai  -

बहुत पुरानी बात है एक राज्य में रत्नसेन नामक राजा राज्य करता था। राजा का राज्य दूर-दूर तक फैला था और उसकी प्रजा भी बहुत सुखी थी। राजा की एक पुत्री थी | राजकुमारी  को हमेशा एक डर सताता था कि कोई शाकाल नाम का राक्षस उसका अपहरण कर लेगा। राजकुमारी के इस डर के कारण राजा ने राजकुमारी के महल में सैनिकों का बहुत बड़ा पहरा लगा दिया। एक  दिन की बात है एक राक्षस छुपता-छुपाता राजकुमारी के कक्ष में पहुंच गया और एक कोने में दुबक कर बैठ कर राजकुमारी की बात सुनने लगा। 

राजकुमारी अपनी सहेली से कह रही थी- " यह दुष्ट शाकाल मुझे बहुत परेशान करता है  । इसका कुछ ना कुछ इलाज करना जरूरी है।" 

राजकुमारी की बात सुनकर महल में छुपा राक्षस समझ गया कि राजकुमारी किसी बड़े दैत्य या राक्षस की बात कर रही है। शायद यह राक्षस उससे भी बड़ा है । किसी ना किसी तरह इस राक्षस की शक्ति के बारे में जानकारी लेना चाहिए। इतना सोच कर वह राक्षस घोड़े का रूप धारण कर अश्वशाला में जाकर छुप गया।

 उसी रात एक चोर घोड़ा चुराने की नियत से अश्वशाला में घुस आया। चोर ने अश्वशाला  में सभी घोड़ों का निरीक्षण किया। सभी घोड़ों में उसे अश्वरूपी राक्षस ही सबसे हट्टा-कट्टा और सुंदर दिखलाई दिया। वह घोड़े को चोरी करने की नियत से उसकी पीठ पर चढ़ गया और उसकी लगाम अपने हाथ में ले ली। अश्वरूपी राक्षस समझा कि यह अवश्य ही शाकाल राक्षस है जो मेरी हत्या करने की नियत से मेरी पीठ पर चढ़ गया है। 

अश्वरूपी राक्षस ने अपना रूप बदलने की कोशिश की किंतु उसकी लगाम चोर के हाथ में होने के कारण वह अपना रूप नहीं बदल सका। चोर के हाथ से चाबुक खाते ही अश्वरूपी राक्षस दौड़ने लगा। कुछ दूर जाने पर चोर ने  राक्षस की लगाम खींचकर उसे रोकना चाहा किंतु वह नहीं रुका और दौड़ता ही गया। चोर को शंका हुई कि यह घोड़ा नहीं अवश्य कोई राक्षस है जो मुझे मारने के लिए आगे ले जा रहा है। यह आगे जाकर अवश्य मुझे गिरा देगा और मार कर खा जाएगा।

 अश्वरूपी राक्षस दौड़ते-दौड़ते एक विशाल वृक्ष के नीचे से गुजरा । चोर उस वृक्ष की शाखा पकड़कर लटक गया और अश्वरूपी राक्षस पेड़ के नीचे से गुजर गया। जिस वृक्ष की शाखा पर चोर था उसके ऊपर की ही शाखा पर एक बंदर बैठा हुआ था ।  बंदर अश्वरुपी राक्षस का मित्र था । अपने मित्र को इस तरह भागता देख बन्दर ने उसे आवाज लगाई - " मित्र यह कोई राक्षस नहीं अपितु एक साधारण सा  चोर है तुम चाहो तो इसे कुछ क्षण में मार कर खा सकते हो।" 

 बंदर की इस तरह की बातों से चोर को बहुत गुस्सा आ रहा था। जब बंदर इस तरह की बातें कर रहा था तो उसकी पूँछ नीचे लटक रही थी जो चोर के मुंह तक आ रही थी। चोर ने गुस्से में बंदर की पूंछ को अपने मुंह में दवा कर उसे चबाना शुरु कर दिया। बंदर को दर्द तो बहुत हो रहा था किंतु अपने मित्र राक्षस के सामने चोर की शक्ति को कम दर्शाने के लिए बहुत चुपचाप वहीं बैठा रहा किंतु बंदर के चेहरे से उसकी पीड़ा स्पष्ट दिखाई दे रही थी। 

बंदर की यह हालत देखकर उसका मित्र राक्षस उसके समीप आया और बोला- " मित्र तुम कुछ भी कहो लेकिन तुम्हारे चेहरे के हाव भाव स्पष्ट बतला रहे हैं की इस  भयानक शाकाल राक्षस से तुम्हें बहुत डर लग रहा है।"  इतना कहकर अश्वरूपी राक्षस वहां से भाग गया।