हनुमान जी और भीम की कथा| Hanuman ji aur Bhimsen ki Katha -

Hanuman ji aur Bhimsen ki Katha -
 Hanuman ji aur Bhim ki katha

हनुमान जी का जन्म  त्रेता युग में हुआ था और वे श्रीराम के समकालीन थे  और वे भगवान राम के परम भक्त थे और लंका युद्ध में श्रीराम का सांथ देकर माता सीता को लंका से मुक्त करवाया और युद्ध में विजय प्राप्त की |

इसी प्रकार भीम का जन्म द्वापर युग में हुआ औरश्री कृष्ण के समकालीन थे | भीम  भी महाबलशाली योद्धा थे | महाभारत के पांच पांडवों में भीम सबसे अधिक शक्तिशाली और बलवान थे | उनमें 100 हाथियों का बल था और उस समय सम्पूर्ण पृथ्वी पर उनके समान शक्तिशाली कोई दूसरा नहीं था | उन्होंने अच्छे-अच्छे महाबलियों को युद्ध में धूल चटाई थी |

हनुमान जी और भीम दोनों को पवन पुत्र कहा जाता है | हनुमान जी को अमरता का बलिदान मिला है इसीलिए जब तक धरती रहेगी हनुमान जी साक्षात् इस धरती पर रहेंगे और लोगों के कष्टों को दूर करते रहेंगें | महाभारत में एक रोचक प्रसंग आता है जब अलग-अलग युगों के दो महान योद्धा हनुमान जी और भीम का सामना होता है

बात महाभारत काल की है | पांडवों को 14 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था | इस दौरान एक बार पांडव किसी वन में रुके हुए थे उस वन में एक सरोवर था उस सरोवर में सुगन्धित कमल पुष्प लगे हुए थे जिनकी सुगंध चारो तरफ फ़ैल रही थी | द्रोपदी को इन पुष्पों की सुगन्ध अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी | द्रोपदी ने भीम को पुष्प कमल लाने के लिए कहा और भीम निकल गए सुगन्धित पुष्प कमल की तलास में , तभी  रास्ते में उन्हें एक बूड़ा वानर मिला जो लेटा हुआ था और उसकी पूंछ रास्ते में फैली हुई थी | रास्ते में वानर की पूँछ फैली होने से भीम आगे नहीं जा सकते थे क्यूंकि किसी भी जीव के लेटा होने पर उसके अथवा उसके शारीर के किसी अंग के ऊपर से जाना अमर्यादित माना जाता है |

अपने रास्ते में वानर की पूंछ देख कर भीम ने वानर से अपनी पूंछ हटाने के लिए कहा | भीम की बात सुनकर वानर बोला- “ भाई , मैं तो राम का भक्त हूँ , रामजी की कृपा से यहाँ लेटा हुआ हूँ | आप चाहें तो मेरे या मेरी पूंछ के ऊपर से जा सकते हैं | “

भीमसेन को वानर की बात पसंद नहीं आई और और उन्होंने गुस्से में वानर से अपनी पूंछ हटाने के लिए कहा | भीमसेन की बात सुनकर वानर बोला – भाई , आप तो पृथ्वी के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हो , आप ही मेरी पूंछ हटा दो | “

भीमसेन ने बार-बार वानर से अपनी हटाने के लिए कहा और वानर ने भी बार बार यही उत्तर दिया | अंत में क्रोधित होकर भीम ने वानर की पूंछ को अपने एक हाँथ से उठाने का प्रयास किया परन्तु वह वानर की पूंछ हिला भी नहीं सके | भीमसेन ने फिर अपने दोनों हाथों से वानर की पूंछ हटाने का प्रयास किया परन्तु वो वानर की पूंछ टस से मस नहीं कर सके | भीम ने बार बार प्रयास किया पर हर बार उन्हें असफलता ही हाँथ लगी |

भीमसेन समझ गए की यह कोई साधारण वानर नहीं है अपितु कोई देव पुरुष है जो भीम की परीक्षा ले रहे हैं | भीम ने दोनों हाँथ जोड़कर अपनी गलती स्वीकार करते हुए वानर से उनका परिचय पूछा | वानर ने अपना परिचय श्रीराम के सेवक के रूप में बतलाया | वानर की इतनी बात सुनकर भीमसेन समझ गए की ये कोई और नहीं अपितु साक्षात् हनुमान जी हैं |

भीमसेन ने हनुमान जी को प्रणाम करते हुए कहा “ क्षमा करें हनुमान जी, मुझे अपनी शक्ति का झूठा अभिमान हो गया था , आपने मेरे अभिमान को तोड़ने के लिए यह लीला रची है , कृपा कर आप मुझे अपने असली रूप में दर्शन दें | “

Hanuman ji aur Bhim ki kahani
 Hanuman ji aur Bhim ki kahani

 भीम की बात सुनकर हनुमान जी ने अपने असली रूप में आ कर अपना विशाल रूप दिखलाया | हनुमान जी ने भीम से कहा – “ हम दोनों ही पवन पुत्र हैं इसीलिए तुम मेरे छोटे भाई भी हो , यही कारण है कि मैं तुम्हे बार-बार भाई कह कर संबोधित कर रहा था | “ इतना कहकर हनुमान जी ने भीमसेन को गले लगा लिया | हनुमान जी के गले लगकर भीम को लगा मानो उनके शारीर में अथाह शक्ति का संचार हो गया हो |

भीम ने हनुमान जी से आग्रह किया कि वह कौरवों के सांथ होने वाले युद्ध में पांडवो का सांथ दें | जिस पर हनुमान जी ने कहा – “ जिस युग से मैं हूँ वह युग दूसरा था उसमें मैंने श्रीराम के लिए कई युद्ध किये थे, अब यह युग दूसरा है यहाँ मेरा युद्ध करना सही नहीं है इसीलिए मैं युद्ध मैं सामिल नहीं हो सकता परन्तु युद्ध में पांडवों के रथ की ध्वजा पर मेरा वास होगा |”

इस प्रकार हनुमान जी महाभारत युद्ध में हमेशा श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजित रहे और अर्जुन के रथ की रक्षा करते रहे |

शिक्षा – “ हनुमान जी और भीम की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी हमें कभी भी अपनी शक्ति और बल का घमण्ड नहीं करना चाहिए | “