ललितादित्य मुक्तपीड , Lalitaditya Muktpeed In Hindi
 Lalitaditya Muktpeed

ललितादित्य मुक्तपीड़ का इतिहास | Lalitaditya Muktpeed In Hindi -

सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ कश्मीर के कार्कोट वंश के सबसे शक्तिशाली राजा थे | अपने शासन काल में सम्राट ललितादित्य ने कश्मीर और भारत पर होने वाले मुस्लिम आक्रमणों को ना सिर्फ सफलता पूर्वक दबाया अपितु तुर्कों, अरबियों, कम्बोजों और तिब्बतियों को युद्धों में हराया | इन्होने भारत के बाहर भी कई युद्ध किये और उनमें जीत हासिल कर अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार मध्य एशिया से तुर्किस्तान तक किया | इनका राज्य तिब्बत से लेकर केस्पियन सागर और बंगाल से लेकर ईरान तक फ़ैल चुका था | युद्धों में लगातार जीत हासिल करने के कारण विदेशी इतिहासकारों ने ललितादित्य मुक्तापीड़ को “ कश्मीर का सिकंदर ’’ कहा | परन्तु हमारे तथाकथित इतिहासकारों ने इन्हें इतिहास में वह स्थान नहीं दिया जिसके ये हकदार थे |  

ललितादित्य मुक्तापीड़ और कार्कोट राजवंश| Laliaditya and karkota dynasty -

ललितादित्य मुक्तापीड का जन्म कश्मीर के कार्कोट वंश में हुआ | कार्कोट राज्य की स्थापना दुर्लभ वर्धन ने की थी | दुर्लभवर्धन गोंडडीया (गोनंद ) वंश के राजा बलादित्य के सेनापति थे , राजा बलादित्य ने इनकी वीरता से प्रसन्न होकर अपनी पुत्री अनंगलेखा का विवाह इनसे करवाया | राजा बलादित्य के बाद दुर्लभबर्धन के हाँथ में राज्य की बागडोर आई और दुर्लभवर्धन ने  कार्कोट राजवंश की स्थापना की | दुर्लभवर्धन के बाद उनके पुत्र  पुत्र दुर्लभक (प्रतापादित्य) राजा बने | ललितादित्य के पिता राजा दुर्लभक (प्रतापादित्य) और माता नरेन्द्रप्रभा थी | ललितादित्य के भाई बज्रादित्य ( चन्द्रपीड) , उदयादित्य(तारपीड) थे | राजा दुर्लभक (प्रतापादित्य) का शासन काल 662 -712 ईसवीं के आस-पास रहा इनके शासन काल में कार्कोट वंश नई ऊँचाइयों तक पहुंचा | प्रतापादित्य के बाद 712-720 ईसवीं तक बज्रादित्य ( चन्द्रपीड) और 720-724 ईसवीं तक उदयादित्य(तारपीड) कश्मीर के शासक रहे | 724 ईसवीं में ललितादित्य मुक्तापीड राजा बने सफलता पूर्वक अपने राज्य का संचालन किया और 760 ईसवीं तक राज्य किया |

सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड से संबंधित पुस्तक (Books ) ऑनलाइन उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी गई है -

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ललितादित्य मुक्तापीड़ का विजय अभियान | Lalitadiya Mukatapid Victories -

सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ शासन काल 724 ईसवी से 760 ईसवीं तक रहा | जिस समय ललितादित्य राजगद्दी पर बैठे उस समय भारत पर मुस्लिम आक्रान्ताओं के लगातार हमले हो रहे थे | सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ ने ना सिर्फ बड़ी ही सफलता पूर्वक इन हमलों को रोका बल्कि भारत से बाहर अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया | सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ की प्रथम राजधानी श्रीनगर थी उसके पश्चात इन्होने परिहासपुर को राजधानी बनाया | जिस समय ललितादित्य राजगद्दी पर बैठे उस समय चीन में टेंग वंश का शासन था और तिब्बत एक शक्तिशाली राज्य के रूप में अपनी पहचान बना चुका था | कश्मीर और चीन दोनों तिब्बत के बड़ते प्रभाव से परेशान थे इसी कारण ललितादित्य ने तिब्बत के खिलाफ चीन का सांथ दिया फलस्वरूप कश्मीर और चीन में एक दुसरे के सांथ सेन्य सहायता का समझौता हुआ | ललितादित्य अरब मुस्लिमों के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहते थे, वे जानते थे की अरब पंजाब और सिंध को जीतकर कश्मीर पर हमला अवश्य करेंगें | इस समय कश्मीर एक छोटा राज्य था | ललितादित्य ने अपना एक दूत चीन के टेंग सम्राट के पास भेजा और उनसे सेन्य सहायता मांगी और चीन को समझाने का प्रयास किया कि कश्मीर के बाद अरबी हमलावर चीन पर भी हमला करेंगें | चीन ने ललितादित्य की सहायता के लिए अपने सैनिक भेजे वहीँ ललितादित्य ने बप्पा रावल और कुछ अन्य छोटे-छोटे राजवंशों को भी इस अभियान से जोड़ा | अरब आक्रान्ता जुनैद ने जब आक्रमण किया तो ललितादित्य ने बप्पा रावल , छोटे राजाओं और चीन की सहायता से जुनैद को बुरी तरह हराया इस अभियान से जुनैद और उसकी सेना को भारी नुकसान हुआ और उसकी सेना युद्ध मैदान से भाग खड़ी हुई | हिन्दुओं की संयुक्त सेना ने जुनैद को अरब तक खदेड़ दिया | मेवाड़ के शासक बप्पा रावल ललितादित्य के परम मित्र थे और इन्होने सांथ मिलकर मुस्लिम आक्रान्ताओं की कमर तोड़ दी थी | बप्पा रावल ने ललितादित्य की सहायता से सिंध के मुस्लिम शासक सलीम को हराया और सिंध और गजनी पर अधिकार कर लिया | इस प्रकार हिन्दू सेनाओं ने सिंध, गजनी , काबुल , बलूचिस्तान पर अपना अधिकार कर लिया |

अपने विजय अभियान ने ललितादित्य मुक्तपीड ने 740 ईसवीं के आसपास कन्नौज के प्रतापी राजा यशोवर्धन को पराजित करके संधि के लिए विवश कर दिया | सम्राट ललितादित्य ने आगे बढ़ते हुए बंगाल और कलिंग राज्य (वर्तमान उड़ीसा) को भी जीत लिया | कलिंग विजय से इन्हें कई हाथी मिले  | इस प्रकार ललितादित्य के राज्य की सीमायें कश्मीर से असाम तक फ़ैल गईं थे | इन्होने  दक्षिण में चालुक्य राजकुमारी रति से विवाह किया और चालुक्य के सांथ मिलकर  राष्ट्रकूटों को हराते हुए कावेरी नदी तक का क्षेत्र जीत लिया | लौटते हुए इनकी सेनाएं कोंकड़, गुजरात और मालवा होते हुए कश्मीर वापस आईं |

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ललितादित्य की नीति भारतीय राजाओं के प्रति नरम और मुस्लिम आक्रान्तों के प्रति कठोर थी | तुर्किस्तान के बुखारा के शासक मोमिन से ललितादित्य ने चार युद्ध लडे और उनमें जीत हासिल की अंतिम युद्ध में मोमिन मारा गया और इनके राज्य की सीमायें तुर्किस्तान होते हुए केस्पियन सागर तक फ़ैल गईं | कुछ स्थानों पर ललितादित्य द्वारा हारे हुए राज्य के लोगों और राजाओं को विजय चिन्ह पहनाने का उल्लेख मिलता है | कहा जाता है कि ललितादित्य ने तुर्कों पर विजय पाने के बाद उनके सिर के आगे के आधे बाल मुंडवा दिए थे | तुर्कों ने अपने दोनों हाँथ पीछे बाँध कर सिर झुकाकर ललितादित्य का स्वागत किया |

कल्हड़ के अनुसार ललितादित्य ने तिब्बत को हराकर उसके बड़े क्षेत्र पर अधिकार  कर लिया और चीन के कुछ शहरों को भी जीता | अपने विजय अभियान से ललितादित्य 12 वर्ष बाद कश्मीर लौटे |


ललितादित्य मुक्तापीड़ का साम्राज्य | Kingdom of Lalitaditya mukapeed -

सम्राट ललितादित्य ने अपने छोटे से राज्य कश्मीर का विस्तार पूर्व में बंगाल और असम तक, पश्चिम में तुर्किस्तान और ईरान तक, दक्षिण में कोंकड़ और कावेरी नदी तक, तिब्बत से लेकर द्वारिका तक और चीन के कुछ हिस्सों तक फैला दिया |     

ललितादित्य मुक्तपीड का साम्राज्य कश्मीर के छोटे से हिस्से से बंगाल, उड़ीसा,दक्षिण भारत में कावेरी नदी तक , तिब्बत और चीन के कुछ हिस्सों से लेकर, मध्य एशिया और तुर्किस्तान तक फ़ैल गया था | कहा जाता है कि ललितादित्य ने कोई भी युद्ध नहीं हारा था तभी उन्हें कश्मीर का सिकंदर कहा जाता है | 

ललितादित्य मुक्तापीड़ का साहित्य में उल्लेख –

 ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश के इतिहासकारों ने अपने ही देश के लेखकों द्वारा लिखे गए साहित्य को अतिशयोक्तिपूर्ण मानकर पूरी तरह अनदेखा कर दिया और विदेशी लेखकों द्वारा लिखे गए इतिहास को ही सच माना है | ललितादित्य एक ऐसे राजा हुए जिनके बारे में जानकारी भारतीय साहित्य के सांथ-सांथ ईरानी और चीनी साहित्य में भी मिलती है |

कश्मीर के राजवंशों और ललितादित्य के विषय में सर्वाधिक जानकारी कल्हड़ द्वारा रचित राजतरंगिनी से प्राप्त होती है | कल्हड़ ने सम्राट ललितादित्य को एक महान शासक और महान विजेता बतलाया है जिसने भारत के बाहर चीन, तिब्बत और मध्य एशिया में अपने साम्राज्य का विस्तार किया और अपने साम्राज्य विस्तार करने के बाद ललितादित्य 12 वर्ष वाद कश्मीर  लौटे |

ईरानी लेखक अलबरूनी ने सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड को मुथाई नाम से संबोधित किया | अलबरूनी के अनुसार कश्मीर के राजा मुथाई ने मोमिन को हराया और इसी की याद में कश्मीरी लोग चैत्र की दूसरी तिथि को त्यौहार के रूप में मनाते हैं | कुछ अन्य अरबी लेखकों ने भी ललितादित्य को महान राजा बतलाया |

सम्राट ललितादित्य की ख्याति चीन तक थी | चीन के टेंग (Tang) राजवंश का उल्लेख करती पुस्तक “ Xing Tang Shu” में ललितादित्य का वर्णन है जिसमें उन्होंने अपने अभियान के लिए चीन से सेन्य सहायता की मांग की थी |

विदेशी इतिहासकारों ने ललितादित्य को कश्मीर का सिकंदर और भारत का सिकंदर कहकर संबोधित किया है जबकि हमारे देश के ही इतिहासकारों ने ललितादित्य मुक्तपीड के बारे में मौन धारण कर लिया |

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ललितादित्य मुक्तापीड़ के निर्माण  कार्य

ललितादित्य मुक्तपीड़ एक महान विजेता के सांथ-सांथ एक महान निर्माणकर्ता और विद्वानों के संरक्षक भी थे | उन्होंने अपने शासन काल में कई मंदिर, बौद्ध मठ और भवन बनवाये | ललितादित्य ने कश्मीर और अन्य स्थानों पर कई छोटे-बड़े मंदिर बनवाये इनमें सबसे महत्वपूर्ण है मार्तण्ड सूर्य मंदिर | भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर बहुत ही विशाल था, यह मंदिर वर्तमान कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित था आज भी इस स्थान मंदिर के अवशेष मौजूद हैं | एक हिन्दू राजा होने के बाबजूद सम्राट ललितादित्य ने कई बौद्ध मठ भी बनवाये | सम्राट ललितादित्य द्वारा बनवाये गए मंदिर और मठ या तो समय के सांथ नष्ट हो गए या फिर मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट कर दिए गए | ललितादित्य ने कई शहर भी बसाये थे | इन्होने कश्मीर के उपरी क्षेत्र से नहरें बनवाई और उनसे निचले क्षेत्र में सिंचाई करवाई | सम्राट ललितादित्य ने व्यापार, चित्रकला और मूर्तिकला को बढ़ावा दिया | ललितादित्य एक कुशल वीणावादक और अच्छे लेखक भी थे | कन्नौज युद्ध में राजा यशोवर्मन को हराने के बाद उनके दरवारी रत्न कवि भवभूति और वाक्पतिराज को कश्मीर लाकर अपने दरवार में स्थान दिया |

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