Ganesh ji KI Shresthta Kahani , गणेशजी की श्रेष्ठता की कहानी

 श्री गणेशजी की श्रेष्ठता की कथा | Ganesh ji KI Shresthta Kahani - 

सभी धार्मिक कार्यों और पूजा पाठ में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है | गणेश जी को सभी देवताओं में प्रथमपूज्य माना गया है | गणेश जी की पूजा के बगैर कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता | गणेश जी को शुभ-लाभ के दाता और ऋद्धि-शिद्धि का स्वामी माना जाता है | गणेश जी को ही प्रथम पूज्य क्यूँ माना गया है इससे संबंधित कुछ कथाएं धर्म-गर्थों में वर्णित है जो इस प्रकार हैं -

[1] पूर्वकाल में एक बार देवताओं ने माता पार्वती को अमृत से तैयार किया हुआ एक मोदक दिया , जिसे देखकर उनके दोनों बालक ( कार्तिकेय और गणेश ) माता से मोदक मांगने लगे | तब माता पारवती ने उनकी बुद्धि को परखने के उद्देश्य से मोदक के महत्व का वर्णन करते हुए उनसे कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके सर्वप्रथम सभी तीर्थों का भ्रमण कर आएगा उसी को मैं यह मोदक दूंगी| माता की ऐंसी बात सुनकर कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर आरूढ़ होकर शीघ्रता से चल दिए , इधर गणेशजी का वाहन मूसक होने से वह सोच में पड़ गए कि मेरा वाहन तो चूहा है मैं अपने बड़े भाई से पहले नहीं आ सकता हूँ | तब गणेशजी ने श्रद्धापूर्वक अपने माता पिता की परिक्रमा करके उनके सामने हाथ जोडकर खड़े हो गए,यह देखकर माता पार्वती और पिता शंकर भगवान ने मन ही मन गणेशजी की बुद्धि की प्रशंसा करते हुए उन्हें अपने गले से लगा लिया | उधर कार्तिकेय जी अपने वाहन से जल्दी –जल्दी सभी तीर्थों का भ्रमण कर खुश होते हुऐ दिन भर में वापस आ गये, उन्होंने देखा कि गणेश तो पहले से ही माता पिता के पास बैठे हुए हैं | तब कार्तिकेय जी ने अपने माता पिता से गणेशजी के पहले आने के सम्बंध में पूछा तो माता पार्वती ने उन्हें समझाते हुए कहा कि समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान ,सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ प्रणाम ,सब यज्ञों का किया हुआ अनुष्ठान ,तथा सभी प्रकार के व्रत ,मन्त्र ,योग और संयम का पालन – ये सभी साधन माता–पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते | इसलिए यह गणेश सैकड़ों पुत्रो,सेंकडों गणों से भी बढकर है | इसलिए यह मोदक मैं गणेश को ही अर्पण करती हूँ | तथा माता–पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा होगी | और इस प्रकार तभी से प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में गणेशजी को सर्वप्रथम पूजा जाता है |

[2] एक अन्य कथा के अनुसार एक बार सभी देवताओं में विवाद हो गया कि उनमें श्रेष्ठ और प्रथम पूज्य कौन है ? आपस में कोई निष्कर्ष ना निकलता देख सभी देवता त्रिदेव अर्थात ब्रम्हा, विष्णु, महेश के पास गए और पूरी बात बतलाई | देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव ने कहा कि सभी देवताओं को पृथ्वी की परिक्रमा करनी होगी है और जो सबसे पहले परिक्रमा कर वापस आएगा वही सबसे श्रेष्ठ कहलायेगा | भगवान शिव ने गणेशजी और गणेश जी के बड़े भाई कार्तिकेय जी को भी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहा | सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर निकल पड़े पृथ्वी की परिक्रमा करने | भगवान गणेश का वाहन चूहा था | गणेश जी ने पृथ्वी की परिक्रमा ना करते हुए अपने माता-पिता अर्थात भगवान शिव और माता पार्वती की परिक्रमा की और उनके आगे हाँथ जोड़ कर खड़े हो गए | इधर सभी देवता पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे और देखते हैं गणेश जी ने पृथ्वी की परिक्रमा ना करके अपने माता- पिता की परिक्रमा की है | ब्रम्हा जी ने गणेश जी को प्रतियोगिता का विजेता घोषित किया | कई देवताओं ने कहा कि गणेश जी ने तो पृथ्वी की परिक्रमा की ही नहीं है | इस पर ब्रम्हा जी ने कहा – “ इस संसार में माता-पिता से बढ़कर कोई भी नहीं होता है, माता पिता की सेवा से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है , गणेश ने माता-पिता की परिक्रमा कर पृथ्वी की परिक्रमा से अधिक पुन्य फल प्राप्त किया है और अपनी बुद्धि और पितृ भक्ति का परिचय दिया है | गणेश ही सभी देवों में श्रेष्ठ होने के योग्य हैं | “

ब्रम्हा जी की बात सुनकर सभी देवताओं ने गणेश जी पर पुष्पों की वर्षा कर उन्हें प्रथम पूज्य के रूप में स्वीकार किया | तभी से सभी देवताओं में गणेश जो को श्रेष्ठ मानकर हर पूजा पाठ में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है और गणेशजी की पूजा के बिना कोई भी धार्मिक कार्य पूर्ण नहीं माने जाते हैं |

शिक्षा – “ गणेश जी के श्रेष्ठता कि कहानी से हमें शिक्षा मिलती है की माता पिता की सेवा से बढ़कर दुनिया में कुछ भी नहीं है  ईश्वर भी उसी का सांथ देता है जो अपने माता-पिता की सेवा करता है |”