Raja aur Hans ki kahani ,  राजा और हंस की पंचतंत्र कहानी
राजा और हंस की कहानी 

राजा और हंस की कहानी | Raja aur Hans ki kahani -

बहुत समय पहले एक राजा हुआ करता था जिसका नाम चित्ररथ था | उसके राज्य में एक बहुत बड़ा तालाब था | तालाब के चारो तरफ सुन्दर फूल और वृक्ष लगे हुए थे | तालाब की सुन्दरता से मोहित होकर हंसो का एक झुण्ड तालाब में आकर रहने लगा | हंसो की उस प्रजाति के हर छः माह में स्वर्ण पंख निकलते थे | तालाब में रहने के बदले सभी हंस अपने स्वर्ण पंख उस राज्य के राजा को लगान के रूप में दे देते थे | इस प्रकार राजा को भी हर छः माह में बहुत से स्वर्ण पंख मिल जाते थे |

एक दिन उस तालाब में कहीं से एक बड़ा पक्षी आ गया और हंसो के बीच रहने लगा | हंसो को यह बात अच्छी नहीं लगी | हंसो का राजा उस बड़े पक्षी के पास गया और बोला- “ हम इस तालाब में बहुत समय से रह रहे हैं और इस तालाब में रहने के बदले इस राज्य के राजा को लगान के रूप में स्वर्ण पंख भी देते हैं | इसीलिए इस तालाब पर हमारा अधिकार है | ”

परन्तु वह बड़ा पक्षी हंसो की बात मानने को तैयार नहीं हुआ और जबरन उनके बीच रहने लगा | एक दिन हंसो से उसकी लड़ाई हो गई और सभी हंसो ने मिलकर बड़े पक्षी को बहुत मारा | बड़ा पक्षी फिर भी तालाब छोड़ने को तैयार नहीं हुआ और राजा के पास जाकर सभी हंसो की शिकायत करते हुए बोला – “ महाराज ! यह हंस इस तालाब में किसी और को नहीं रहने देते और  आपसे भी नहीं डरते |”

हंसो की शिकायत सुनकर राजा को गुस्सा आ गया और उसने अपने सेनापति को आदेश दिया कि उन हंसो को पकड़कर राजदरवार में लाया जाये | सेनापति सैनिको की टुकड़ी लेकर जब तालाब के पास पहुंचा तो सैनिकों के आक्रामक तेवर देखकर हंसो का राजा सब समझ गया और अपने साथी हंसो को लेकर दूसरे राज्य के तालाब में चला गया | इस प्रकार शरण में आये हुए हंसो को दुत्कार कर राजा को उनसे प्राप्त होने वाले स्वर्ण पंखों से भी हाँथ धोना पड़ा|

शिक्षा –  " राजा और हंस की  कहानी से हमें शिक्षा मिलती है की शरणागत को कभी दुत्कारना नहीं चाहिए | "