Rani Ahilyabai Holkar In Hindi , Devi ahliya bai jivan parichay aur itihas
Devi Ahilyabai Holkar

रानी अहिल्याबाई होल्कर  जीवनी और इतिहास | Rani Ahilyabai Holkar In Hindi –

रानी अहिल्याबाई होल्कर मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र ( इंदौर ) की  महारानी थीं | वे एक न्यायप्रिय , धर्मप्रिय , धर्मरक्षक, प्रजारक्षक शासक के रूप में जानी जाती हैं | उनकी छवि विनम्र और उधर शासक की रही थी | अपने शासन काल में उन्होंने प्रजा की भलाई के लिए कुओं , बावड़ियों, अन्नक्षेत्र , मंदिरों , घाटों, धर्मशालाओं और महलों के निर्माण करवाये | उन्होंने मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तोड़े गए सोमनाथ मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया | इनका जन्म एक साधारण से किसान परिवार में हुआ और वहाँ से इंदौर की महारानी बनी | वे भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं | उनके द्वारा किये गए न्याय के किस्से आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं | उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा |

अहिल्या बाई का जन्म | Ahilya Bai Birth -

अहिल्या बाई का जन्म मानकोजी शिन्दे के घर 31 मई 1875 को चौंढ़ी गाँव में हुआ था | चौंढ़ी गाँव वर्तमान महाराष्ट्र के जामखेड, अहमद नगर में आता है | इनके पिता मानकोजी शिंदे गाँव के सम्मानित परिवार से थे और मराठा धनगर जाती से आते थे | अहिल्या बाई के माता पिता ने बचपन से ही इन्हें अच्छे संस्कार दिए | इन्ही संस्कारों के कारण अहिल्याबाई ने अपने शासन काल में जो कार्य किये उन्हें आज भी याद किया जाता है | अहिल्या बाई की बचपान से ही ईश्वर में अटूट आस्था थी और ये बाल्यपन से ही मंदिर जाया करती थीं |

अहिल्या बाई का विवाह –

कहा जाता है की जब मालवा के मराठा सूबेदार मल्हार राव पूना जा रहे थे तब रास्ते में एक मंदिर में रुके , वहाँ उन्होंने बालिका अहिल्या बाई को देखा और अहिल्या की मासूमियत और संस्कारों से वे इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि अपने पुत्र खांडे राव के सांथ अहिल्या के विवाह का मन बना लिया | उन्होंने विवाह का प्रस्ताव अहिल्या के पिता मानकोजी के सामने रखा | मानकोजी ने झट से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया | 1733 में मात्र 8 से 10 वर्ष की आयु में अहिल्या का विवाह खांडे राव होल्कर से हुआ | अहिल्या बाई ने अपनी व्यवहार से ससुराल वालों का दिल जीत लिया था |

रानी अहिल्याबाई होलकर से संबंधित पुस्तक (Books ) ऑनलाइन उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी गई है -
रानी अहिल्या बाई  (लेखिका- सुनीता दुबे)

अहिल्याबाई के जीवन के उतार चढ़ाव-

1745 में खांडे राव होल्कर और अहिल्याबाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई | पुत्र का नाम मालेराव रखा गया | लगभग 1748 में इनकी एक पुत्री हुई जिसका नाम मुक्ताबाई रखा गया | एक युद्ध अभियान के दौरान 1754 में दुर्भाग्यवश अहिल्याबाई के पति खांडेराव होल्कर की मृत्यु हो गई | होल्कर राजघराने के लिए ये एक असहनीय क्षति थी | उस समय सती प्रथा का चलन था | अहिल्याबाई के ससुर मल्हारराव ने ना सिर्फ अहिल्या को सती होने से बचाया अपितु उन्हें राज-पाठ की गतिविधियों में भी हिस्सेदार बनाया | मल्हारराव ने अपने राज्य की सीमाओं को बहुत अधिक फैलाया परन्तु 1766 में उनका भी निधन हो गया | मल्हार राव के बाद उनके पोते और अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव राजा बने किन्तु दुर्भाग्यवश 1767 में मालेराव की भी मृत्यु हो गई | मालेराव की मृत्यु से अहिल्याबाई बुरी तरह से टूट गईं थीं ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्हें मालवा राज्य की बागडोर संभालनी पड़ी | अहिल्याबाई ने बड़ी ही कुशलता से राज्य का संचालन किया परन्तु इसी बीच उनके दामाद यशवंत राव फड़के का निधन हो गया और पुत्री मुक्ताबाई सती हो गईं | 

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Rani Ahilyabai Holkar

अहिल्या बाई होल्कर का शासन काल –

लगातार सगे सम्बन्धियों के दुनिया छोड़ कर जाने के बाद राज्य की जिम्मेदारी अहिल्या बाई होल्कर पर आ गई जिसे उन्होंने बहुत ही सफलता पूर्वक निभाया | उन्होंने कई युद्धों में भाग लिया और अपने राज्य की रक्षा की | रानी अहिल्या बाई ने पवित्र नर्मदा नदी के किनारे महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया | उन्होंने महेश्वर में किले और एक भब्य महल का निर्माण करवाया | पवित्र नर्मदा नदी के किनारे सुन्दर घाट का निर्माण करवया और महेश्वर में कई भव्य और सुन्दर मंदिर बनवाये | अहिल्या बाई के दरवार में कई विद्वानों, साहित्यकारों, संगीतकारों और कवियों को संरक्षण मिला था | इनके शासन काल में महेश्वर कला और संगीत के क्षेत्र में गढ़ बन गया था | धीरे-धीरे उन्होंने अपने साम्रज्य को आगे बढाया | रानी अहिल्या बाई प्रतिदिन अपनी प्रजा से मिलती थीं और उनकी समस्या सुनकर उनका निदान भी करती थीं | अहिल्याबाई होल्कर ने अपनी प्रजा को “ संतान “ की तरह स्नेह दिया वहीँ जनता ने उन्हें “ माता “ और “ देवी “ के रूप में सम्मान दिया | उन्होंने विधवाओं को समाज में उचित सम्मान देने और उनके उत्थान के प्रयास किये | रानी अहिल्या बाई ने गांवो में कुंए, बावड़ी और सड़कों का निर्माण करवाया | राहगीरों के लिए विश्राम गृह और धर्मशालाएं बनवाईं | गरीबों, जरुरतमंदो , पीड़ितों और असहाय लोगों के लिए उनके मन में दया, करूणा और परोपकार की भावना कूट-कूट कर भरी थी | उन्होंने चाँदी की मोहरे भी चलवाईं थी जिनमे से कुछ मोहरे आज भी इंदौर के मल्हार मार्तण्ड मंदिर में सुरक्षित रखी गई हैं | रानी अहिल्या बाई भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं और उनके राज्य में जो भी राजकीय आदेश जारी किये जाते थे वे भगवान शिव का आदेश मानकर भगवान शिव के नाम से जारी होते थे | यह परम्परा रानी अहिल्या बाई के बाद भी जारी रही |

रानी अहिल्या बाई (बुक)

रानी अहिल्याबाई का न्याय –

रानी अहिल्याबाई होल्कर एक धर्मपरायण स्त्री थीं वो जो भी न्याय करती थीं उसमें अपने पराये का भेद नहीं करती थीं | कहा जाता है कि एक बार रानी अहिल्या बाई के पुत्र मालेराव का रथ कहीं जा रहा था | रथ के सामने आने से एक बछड़े की मौत हो गई | बछड़े के सांथ उसकी माँ भी थी जो बछड़े की मौत से बहुत दुखी और व्याकुल हो गई | आस पास के लोगों ने यह दृश्य देखा परन्तु राजकुमार का रथ होने के कारण कोई कुछ नहीं बोला | यह बात जब रानी अहिल्याबाई तक पहुँचीं तो वह बहुत दुखी हुईं | रानी अहिल्या बाई ने आदेश दिया कि राजकुमार मालेराव को उसी स्थान पर उसकी माँ के सामने रथ से कुचल दिया जाये | दरवारियों और आम प्रजा ने रानी से दुर्घटनावस बछड़े की मृत्यु होने की जानकारी देकर राजकुमार को क्षमा करने की मांग की परन्तु रानी ने किसी की कोई बात नहीं सुनी | जब मालेराव को सजा दी जा रही थी तभी रथ और मालेराव के बीच वही गाय आ जाती थी जिसके बछड़े की मृत्यु हुई थी | रानी और उस स्थान पर उपस्थित प्रजा समझ गई की गाय ने राजकुमार को माफ़ कर दिया है | प्रजा ने रानी से आग्रह किया गया कि यह गाय भी नहीं चाहती कि उसके कारण किसी माँ को उसका बेटा खोना पड़े | प्रजा के इस प्रकार आग्रह पर रानी ने अपने पुत्र मालेराव को क्षमा कर दिया |

सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड  का इतिहास 

अहिल्या बाई होल्कर के निर्माण कार्य –

रानी अहिल्या बाई ने अपने राज्य के अन्दर और राज्य के बाहर बहुत से निर्माण कार्य करवाए जिनमे कई प्रसिद्ध मंदिर, घाट, किले, और बावड़ियाँ प्रमुख हैं | उन्होंने मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तोड़े गए कई मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया उन्होंने 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 प्रमुख ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ मंदिर और सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धारकरवाया | रानी अहिल्याबाई ने हिमालय से लेकर दक्षिण भारत तक कई नए मंदिरों का निर्माण करवाया | उनके द्वारा किये गए महत्वपूर्ण कार्यों में प्रमुख है –

(1) काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार – ( 1777 औरंगजेब द्वारा तुद्वाये गए काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया )|
(2) सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार – ( 1783 में पूना के पेशवा के सांथ मिलकर सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया ) |
(3) गया का विष्णु मंदिर -1787
(4) महेश्वर का किला -
(5) महेश्वर का महल -
(6) महेश्वर के नर्मदा घाट -
(7) बनारस के घाट -
(8) द्वारका के मंदिर -
(9) बनारस का विश्वेश्वर मंदिर -
(10) उज्जैन के मंदिर -

इन सभी मंदिर और घाटों के अतिरिक्त भी रानी अहिल्याबाई ने देश के सभी प्रमुख धार्मिक स्थलों पर छोटे-बड़े मंदिर और धर्मशालाएं बनवाईं | देवी अहिल्या बाई ने न सिर्फ मंदिरों का निर्माण करवाया अपितु उनके देख-रेख और रख-रखाव की व्यवस्था भी करवाई | रानी अहिल्या बाई ने रास्तों में बावडियों का निर्माण करवाया ताकि राहगीरों के लिए पानी की व्यवस्था हो सके | उन्होंने कुँओं से ज्यादा बावड़ियों पर जोर दिया ताकि जानवर भी आसानी से अपनी प्यास बुझा सकें | 

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Maheshwar Ka Mahal

रानी अहिल्या बाई होल्कर की मृत्यु –

13 अगस्त 1795 में ( तिथि भाद्रपद कृष्णा चतुर्थी ) के दिन 70 साल की उम्र में अहिल्या बाई होल्कर इस दुनिया को छोड़कर परमात्मा में विलीन हो गईं | रानी अहिल्या बाई होल्कर की मृत्यु के समाचार से पूरे मालवा में शोक की लहर छा गई थी |

रानी अहिल्या बाई के उत्तराधिकारी –

रानी अहिल्याबाई होल्कर के सेनापतियों में सबसे प्रमुख तुकोजीराव होल्कर थे जो रानी के रिश्तेदार भी थे | तुकोजीराव रानी अहिल्याबाई के सेना के प्रधान सेनापति थे  | तुकोजीराव उम्र में रानी अहिल्याबाई से बड़े थे परन्तु वे उन्ही अपनी माँ के समान मानते थे और रानी भी उन्हें अपने पुत्र का स्थान देती थीं | रानी चाहती थीं की उनके पश्चात राज्य की बागडोर तुकोजीराव होल्कर ही संभालें | रानी अहिल्याबाई की मृत्यु के पश्चात 1795 में तुकोजीराव होल्कर ने इंदौर राज्य की बागड़ोर संभाली |

रानी अहिल्याबाई स्मृति और सम्मान –

रानी अहिल्याबाई द्वारा जनता और धर्म के लिए किये गए कार्यों के कारण आज भी लोग उन्हें सम्मान देते है | रानी की याद में कई स्थानों पर उनकी मूर्तियाँ लगवाई गईं | महत्वपूर्ण इमारतों और कार्यालयों के नाम उनके नाम पर रखे गए | इंदौर विश्वविश्वविद्याल का नाम उनके नाम पर रखा गया है , इंदौर अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट का नाम रानी अहिल्या बाई होल्कर रखा गया है | भारत सरकार ने रानी अहिल्याबाई को सम्मान देते हुए उनकी याद में 25 अगस्त 1996 को एक डाक टिकट जारी किया | इंदौर में उनके नाम पर पुरस्कार स्थापित किये |
रानी अहिल्या बाई द्वारा प्रजा की भलाई के लिए किये गए कार्यों के कारण वे सदा सदा के लिए लोगों के दिलों में अमर हो गईं हैं |

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Maheshwar 

रानी अहिल्या बाई से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर –

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई किस राज्य की रानी थीं ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई मालवा साम्राज्य (इंदौर ) की रानी थीं |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई के पति का नाम क्या था ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई के पति का नाम खंडेराव होल्कर था |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई की जाती क्या थी ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई मराठा धनकर जाती से संबंधित थीं |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई के पिता का क्या नाम था ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई के पिता मनकोजी सिंदे थे |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई ससुर कौन थे ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई के ससुर मालवा के सूबेदार मल्हार राव होल्कर थे |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई के पुत्र का नाम क्या था ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई के पुत्र का नाम मालेराव था |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई की कितनी संतान थीं ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई को दो संतान पुत्र मालेराव और पुत्री मुक्त बाई थीं |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई का जन्म कब हुआ ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 में हुआ |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई की मृत्यु कब हुई ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई के मृत्यु 13 अगस्त 1795 ईसवीं में हुई |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई का जन्म कहाँ हुआ ?

उत्तर – रानी अहिल्याबाई का जन्म महाराष्ट्र के चौंढ़ी गाँव में हुआ था |

प्रश्न- रानी अहिल्याबाई की राजधानी क्या थी ?

उत्तर – नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर रानी अहिल्याबाईकी राजधानी था |