Maharana Baktavar Singh hindi
Maharana Bakhtavar Singh

महाराणा बख्तावर सिंह जीवन परिचय | Maharana Bakhtabar Singh Jivni –

महाराणा बख्तावर सिंह मालवा क्षेत्र के महान क्रन्तिकारी वीर थे जिन्होंने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे | मालवा क्षेत्र में महाराणा बख्तावर सिंह ने सर्वप्रथम अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी | आज भी मालवा में महाराणा बख्तावर सिंह लोगों के बीच पूजे जाते हैं |

महाराणा बख्तावर सिंह का जन्म 14 दिसंबर 1923 में वर्तमान मध्य प्रदेश के धार जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर अमझेरा कस्बे में महराजा अजीत सिंह राठोड़ के महल में में हुआ | इनकी माता का नाम महारानी इंद्रकुंवर था | 21 दिसंबर 1931 को महाराजा अजीत सिंह के निधन हो जाने से इन्हें मात्र 7 वर्ष की उम्र में रियासत की बागडोर संभालनी पड़ी | इनकी पत्नी का नाम रानी दौलत कुंवर था |

अंग्रजों के बढ़ते अत्याचारों के कारण 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ़ क्रांति पूरे देश में फ़ैल चुकी थी मालवा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा | इंदौर, उज्जैन और उसके आप-पास का इलाका मालवा कहलाता है | इस क्षेत्र में क्रांति का बिगुल बजाने वाले महाराणा बख्तावर सिंह थे | 3 जुलाई 1857 को अमझेरा के महाराणा बख्तावर सिंह और उनकी सेना ने अंग्रेजों की भोपावर छावनी पर हमलाकर दिया | हमला इतना जोरदार था की  अंग्रेजों की सेना भाग खड़ी हुई | महाराणा बख्तावर सिंह की सेना ने शस्त्रागार और कोषालय पर कब्ज़ा कर लिया और छावनी में आग लगा दी | इसके बाद महाराणा बख्तावर सिंह की सेना ने 10 अक्टूबर 1857 को सरदारपुर और 16 अक्टूबर 1857 को मालपुर-गुजरी छावनियों पर भी कब्ज़ा कर लिया जिसमें कई अंग्रेज सैनिक मारे गए | महाराणा की इस विजय से मालवा के लोगों का उत्साह सातवें आसमान पर था | महू, नीमच, अगर और मंडलेश्वर के सैनिक भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए तैयार हो गए |

अंग्रजों की इंदौर छावनी में भी भय व्याप्त हो गया | अंग्रेज समझ गए की अगर महाराणा बख्तावर सिंह को नहीं रोका गया तो मालवा और निमाड़ उनके  हाथों से चला जाएगा | अंग्रेजों ने आस-पास की छावनियों से सैनिकों को एकत्र किया और 31 अक्टूबर 1857 को धार के किले पर हमला कर दिया | इस समय महाराणा बख्तावर सिंह अमझेरा में थे और अंग्रेजों ने इसी का लाभ उठाकर धार के किले पर कब्ज़ा कर लिया | कर्नल डूरंड ने 5 नवम्बर 1857 अमझेरा पर आक्रमण करने का आदेश दिया परन्तु अंग्रेजों की सेना भोपावर से आगे नहीं बढ़ी और भाग खड़ी हुई |


बाद में लेफ्टिनेंट हचिन्सन ने पूरी बटालियन अमझेरा भेजने की योजना बनाई | इसी दौरान कर्नल डूरंड ने अमझेरा रियासत के कुछ प्रभावशाली लोगों को जागीर का लालच देकर कूटनीति से अपनी तरफ मिला लिया और महाराणा बख्तावर सिंह के पास संधिवार्ता हेतु भेज दिया | महाराणा बख्तावर सिंह इस कूटनीतिक चाल में फंस गए और वार्ता के लिए तैयार हो गए |

अपने अंगरक्षकों के मना करने पर भी भोले-भाले महाराणा बख्तावर सिंह ने धार जाने का निर्णय किया | धार जाते समय 11 नवम्बर 1857 अंग्रेजों की अश्वारोही टुकड़ी ने इन्हें रोक लिया | अंगरक्षकों के विरोध के बाद भी अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया | बाद में राघोगढ़ वर्तमान देवास के ठाकुर दौलत सिंह ने अंग्रेजों की महू छावनी पर हमला किया और महाराणा बख्तावर सिंह को छुड़ाने का प्रयत्न किया परन्तु वो सफल नहीं हो सके | महू छावनी पर हुए हमले से अंग्रेज घबरा गए और उन्होंने महाराणा को इंदौर जेल भेज दिया और उन्हें तरह तरह की यातनाये दी गईं |

10 फरवरी 1858 को महाराणा बख्तावर सिंह इंदौर में नीम के पेड़ पर फांसी दे दी गई | इतिहासकारों का मानना है की अमझेरा नरेश का शरीर इतना वलशाली था की उनके बजन से फांसी का फंदा ही टूट गया | उस समय नियम था कि अगर फंसी का फंदा टूट जाये तो उस व्यक्ति को माफ़ी दे दी जाती थी परन्तु अंग्रेजों में महाराणा बख्तावर सिंह का इतना भय व्याप्त था कि उन्होंने महाराणा को दोबारा फांसी दी और देश का यह सपूत अपनी माटी की रक्षा के लिए शहीद हो गया | जिस पेड़ पर महाराणा को फांसी दी गई वह पेड़ आज भी इंदौर में है | 

Maharana Bakhtavar Singh, महाराणा बख्तावर सिंह
Maharana Bakhtavar Singh

इन सभी घटनाक्रमों से जनता का मनोवल टूट गया | महारण की पत्नी रानी दौलत कुंवर और अन्य सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा किन्तु धीरे-धीरे मालवा क्षेत्र से भी धीर-धीरे क्रांति समाप्त हो गई |

धार जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर अमझेरा कस्बे में महाराजा बख्तावर सिंह का राज महल था जो देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील होने लगा है | महल की कई दीवारे गिर चुकी है | मध्य प्रदेश शासन ने अमझेरा के इस महल को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया है | महल के सामने महाराणा बख्तावर सिंह राठौड़ की प्रतिमा लगाई गई है |

 महाराणा बख्ताबर सिंह की वीरता की कहानियां आज भी मावला और आस-पास के क्षेत्रों में सुनाई जाती हैं परन्तु राष्ट्रीय स्तर उन्हें आज भी वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वो हकदार थे | धन्य है महाराणा बख्तावर सिंह और वो वीर जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए | हम सदा इन वीरों के ऋणी रहेंगे |