निन्यान्वे का फेर हिंदी की बहुत ही प्रचलित कहावत है आइये इसका अर्थ जानते हैं और जानते है इससे जुडी कहानी कौन सी है -

निन्यान्वे का फेर मुहावरे का अर्थ  | 99 ke fer men padna  -

हमारी हिंदी भाषा में बहुत के मुहावरे और लोकोक्तियाँ प्रचलित हैं उन्ही में से एक है " निन्यान्वे का फेर " जिसका प्रयोग लगभग हर हिंदी भाषी करता है | निन्यानवे के फेर में पड़ना का अर्थ होता है " धन संग्रह की चिंता में पड़ना या धन कमाने में अत्यधिक व्यस्त रहना |" जब कोई व्यक्ति धन कमाने में इतना व्यस्त हो जाता है कि उसे किसी ओर बात से कोई लेना देना नहीं रहे या धन कमाने के कारण धन की लालसा में वह परेशान रहने लगे तब इसे निन्यानवे का फेर या निन्यानवे के फेर में पड़ना कहा जाता है |

Ninyanve ke fer me padna muhavra
निन्यानवे का फेर 

निन्यान्वे का फेर कहानी | Ninyanve fer me Padna kahani -

प्रायः अधिकांश मुहावरों या लोकोक्तियों से कोई ना कोई घटना या कहानी अवश्य जुड़ी रहती है इसी तरह "निन्यानवे का फेर मुहावरे " से भी एक कहानी जुड़ी है जो इस प्रकार है -
बहुत पुरानी बात है एक राजा था, वह अक्सर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए वेश बदलकर प्रजा के बीच चला जाता था। एक बार राजा अपने मंत्री के साथ वेश बदलकर एक गरीब किसान की झोपड़ी के पास पहुंचा। राजा ने देखा गरीब किसान और उसका परिवार बैठकर आपस में हंसी मजाक कर रहे थे । बच्चे और किसान व उसकी पत्नी सभी बहुत खुश दिख रहे थे, उनके चेहरे पर खुशी की एक अलग ही चमक थी।

राजा ने देखा की किसान तो बहुत गरीब है । उसके पास रहने के लिए अच्छा मकान और पहनने के लिए अच्छे कपड़े भी नहीं है । वह टूटे-फूटे मकान में रहता है और फटे पुराने कपड़े पहने हुए हैं फिर भी इतना खुश कैसे हैं। राजा ने मंत्री से पूछा - " मंत्री जी! मैं तो यहाँ का राजा हूं , मेरे पास रहने के लिए बहुत बड़ा महल है ,नौकर, चाकर लगे हुए हैं । मेरे और मेरे परिवार के पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े हैं, खाने के लिए अच्छा भोजन है फिर भी मैं और मेरा परिवार इतना प्रसन्न और सुखी क्यूँ नहीं है जितना इस गरीब किसान का परिवार है?

मंत्री ने राजा के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया और राजा से निन्यानवे स्वर्ण मुद्राएं मांगी । राजा ने निन्यानवे स्वर्ण मुद्राएं निकालकर मंत्रीजी को दे दी। मंत्री जी ने चुपके से निन्यानवे स्वर्ण मुद्राओं की पोटली किसान की झोपड़ी में रख दी। राजा ने मंत्री से फिर पूछा - " मंत्री जी! अगर आपको रखना ही था तो पूरी सौ स्वर्ण मुद्राएं रख देते । आपने निन्यान्वे स्वर्ण मुद्राएं ही क्यों रखीं ?

मंत्री ने उत्तर दिया - " महाराज ! हम यहां कुछ दिनों बाद फिर से आएंगे तब आपको स्वयं ही इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। " इतना कहकर राजा और मंत्री वापस अपने महल चले गए।

इधर किसान और उसकी पत्नी ने जब अपनी झोपड़ी में स्वर्ण मुद्राओं से भरी पोटली देखी तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने पोटली खोलकर मुद्राओं को हाथ से छू कर देखा तब उन्हें विश्वास हुआ की यह असली स्वर्ण मुद्रायें हैं | उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि यहाँ स्वर्ण मुद्राएं किधर से आई। दोनों ने झोपड़ी के आसपास देखा लेकिन उन्हें कोई भी दिखलाई नहीं दिया। दोनों ने इसे ईश्वर का आशीर्वाद समझकर रख लिया। किसान अपनी पत्नी से बोला - "अरे भाग्यवान ! इसे गिनतो लो इसमें कितनी स्वर्ण मुद्राएं हैं ?

जब किसान और उसकी पत्नी ने स्वर्ण मुद्राएं गिनी तो पोटली में निन्यान्वे स्वर्ण मुद्राएं निकली। पहले तो उन्हें लगा कि शायद उनकी गिनती में कुछ गड़बड़ हो गई है इसलिए उन्होंने दो-तीन बार पुनः गिनती की किंतु हर बार उन्हें निन्यान्वे स्वर्ण मुद्राएं ही मिली। किसान की पत्नी थोडा उदास होकर बोली - " अगर भगवान को देना ही था तो पूरी पूरी सौ मुद्राएं ही दे देते।"

अब किसान और उसकी पत्नी के मन में 100 स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त करने की इच्छा जागृत हो गई। किसान की पत्नी किसान से बोली - " हमारे पास निन्यान्वे स्वर्ण मुद्राएं तो हैं अब हम किसी भी तरह मेहनत करके एक स्वर्ण मुद्रा जोड़कर पहले पूरी सौ स्वर्ण मुद्राएं करेंगे इसके बाद ही इस पैसे का कुछ उपयोग करेंगे। "

इस तरह किसान और उसकी पत्नी एक स्वर्ण मुद्रा जोड़ने मैं लग गए। उन्होंने अब पैसे बचाने शुरू कर दिया अब वो पेट भर भोजन ना करके और अपनी दिनचर्या के खर्चों में कटौती करके पैसा बचाने का प्रयास करने लगे जिससे उनमें चिडचिडापन आने लगा और छोटी-छोटी बातों पर विवाद होने लगे । कुछ दिनों बाद राजा और मंत्री किसान की झोपडी के पास पहुंचे । उन्हें दूर से ही झोपड़ी के अंदर से लड़ाई-झगड़े की आवाज आ रही थी। राजा और मंत्री ने झोपड़ी के पास जाकर देखा तो किसान और उसकी पत्नी झगड़ा कर रहे थे और बच्चे डरे हुए एक तरफ बैठे थे। अब पहले की तरह ना तो किसान के परिवार के चेहरे पर चमक थी नाही किसी तरह की कोई खुशी और प्रसन्नता।

राजा को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने मंत्री से पूछा - " मंत्री जी ! कुछ ही दिनों में माहौल उल्टा कैसे हो गया यह सब क्या है?

मंत्री जी बोले -" महाराज ! यह सब निन्यान्वे का फेर है। पहले किसान और उसकी पत्नी को भविष्य की कोई चिंता नहीं थी नाही पैसे कमाने और जोड़ने की कोई फिकर थी । पहले इनके पास जो कुछ भी था उसी में अपना गुजारा करते थे और पैसा बचाने और उसे जोड़ने की चिंता ना करते हुए चैन से रहते थे इसीलिए यह खुश थे। जब इन्हें निन्यानवे स्वर्ण मुद्राएं हुईं तो और अधिक पाकर 100 स्वर्ण मुद्राएं बनाने के फेर में सुखचैन सब खो बैठे। जैसे हमारे पास कोई वस्तु हो तो और अधिक प्राप्त करना चाहते हैं और जब वह वस्तु मिल जाए तो उससे भी अधिक प्राप्त करना चाहते हैं इस प्रकार हमारी है इच्छा कभी पूरी नहीं होती। इसी को कहते हैं निन्यान्वे का फेर इससे बड़े-बड़े लोग नहीं बच पाए तो यह तो बेचारा छोटा सा गरीब किसान है।"

राजा को मंत्री की बात समझ आ गई और तभी से " निन्यान्वे का फेर "  कहावत शुरू हो गई |