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गंगू और तेनालीराम की कहानी | Gangu aur Tenaliram ki kahani -
विजय नगर में गंगू नाम का व्यक्ति रहता था उसके बारे में कहा जाता था की वह बड़ा ही मनहूस है और जो सुबह-सुबह उसकी शक्ल देख ले उसे खाना भी नसीब नहीं होता | धीरे-धीरे यह बात पूरे विजय नगर में फ़ैल गई और महाराज कृष्ण-देव राय को भी इसके बारे में पता चला | उन्होंने सोचा की उनके राज्य में इस तरह के मनहूस व्यक्ति का रहना उचित नहीं है किन्तु राजा बहुत न्याय प्रिय थे उन्होंने सोचा कि पहले वो यह देखना कहते हैं की इस बात में कितनी सच्चाई है |
राजा ने अपने सेनापति को आदेश दिया कि गंगू को उनके सामने लाया जाए | सैनिकों ने गंगू को महाराज कृष्णदेव राय के समक्ष पेश किया | महाराज कृष्णदेव राय जिस कमरे में सोते थे उसी में गंगू के लिए भी विस्तार लगवाया और सुबह जब राजा सो कर उठे तो उन्होंने सबसे पहले गंगू का चेहरा देखा | कुछ देर बाद अचानक कार्य आ जाने के कारण राजा को राज महल से बाहर जाना पड़ा और उस दिन वो इतने व्यस्त रहे की उन्हें खाना भी नसीब नहीं हुआ | राजा कृष्णदेव राय को यकीन हो गया कि यह सब गंगू का चेहरा देखने के कारण हुआ है | राजा ने सोचा जब इस व्यक्ति के कारण मुझे भोजन नसीब नहीं हुआ तो शहर के दूसरे लोगों के सांथ क्या होता होगा |
गुस्से में राजा कृष्णदेव राय ने गंगू को फांसी पर टांगने का आदेश दिया | यह बात पूरे राज्य में फ़ैल गई कि कल गंगू को फांसी दी जायगी जब यह बात तेनालीराम को पता चली तो वे सारा माजरा समझ गए और तत्काल गंगू के पास पहुंचे | तेनालीराम को देखकर गंगू रोने लगा और तेनालीराम को पूरी बात बतलाई | तेनालीराम ने गंगू को सांत्वना देते हुए उसके कहा की जैसा वो कहें गंगू को वैसा ही करना होगा | गंगू भी तेनालीराम की बात समझ गया |
दूसरे दिन जब गंगू को फांसी दी जानी थी तभी गंगू से उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई | गंगू बोला -" मुझे महाराज से मिलकर कुछ बतलाना है, यही मेरी अंतिम इच्छा है |"
सैनिकों ने महाराज कृष्णदेव राय से गंगू की अंतिम इच्छा बतलाई | महाराज कृष्णदेव राय गंगू की अंतिम इच्छा पूर्ती के लिए उसके पास गए और बोले - " बतलाओ गंगू तुम्हे क्या बतलाना है |"
गंगू बोला- " महाराज ! इस राज्य में एक व्यक्ति मुझसे भी ज्यादा मनहूस है | पहले दण्ड उसे मिलना चाहिए फिर मुझे |"
महाराज कृष्णदेवराय राय ने बड़े आश्चर्य से गंगू से पूछा - " गंगू! बतलाओं वह मनहूस व्यक्ति कोन है |"
गंगू बोला- " महाराज ! वह मनहूस व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि इस राज्य का राजा अर्थात आप हैं |"
यह सुनकर महाराज कृष्णदेव राय अत्यधिक क्रोधित हुए और बोले - " जानते हो गंगू तुम क्या बोल रहे हो | इसके बदले तुम्हें दण्ड भी मिल सकता है |"
गंगू बोला- " महाराज ! मृत्युदंड से बड़ा कोई दण्ड हो सकता है क्या ? यह तो आप मुझे दे ही चुके हैं | कृपया आप मेरी विनती सुन लें, इसके बाद आप जो भी दण्ड देंगें वह मुझे सहर्ष स्वीकार होगा |"
यह सुनकर महाराज का क्रोध कुछ शांत हुआ और बोले- " तुम्हें जो कहना है कहो |"
गंगू बोला- " महाराज ! कल सुबह जब आपने मेरा चेहरा देखा तब आपको दिन भर भोजन नहीं मिला तब आपने मुझे मनहूस समझकर मृत्युदंड दे दिया |ठीक उसी समय कल सुबह मैंने भी आपका चेहरा देखा था और मुझे फांसी की सजा मिल गई मतलब आप मुझसे भी ज्यादा मनहूस हुए |"
महाराज कृष्णदेवराय को पूरी बात समझ आ गई और उन्हें अपने निर्णय पर पछतावा हो रहा था उन्होंने तत्काल गंगू की फांसी की सजा माफ़ कर दी गंगू को अपने पास बुलाकर पूछा- गंगू! यह विचार तुम्हारे मन मैं किसे आया |"
गंगू बोला- " महाराज ! मुझे तेनालीराम ने यह सब करने की सलाह दी थी |"
महाराज कृष्णदेव राय ने गंगू को बहुत सा धन देकर विदा किया और तेनालीराम को बुलाकर उसका धन्यवाद दिया कि उनके कारण एक निर्दोष की जान बच गई और महाराज के हाँथ से एक बहुत बड़ा पाप होने से बच गया |
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