मगरमच्छ और गीदड़ की कहानी


मूर्ख मगरमच्छ और गीदड़ की कहानी | Murkh Magarmacch aur Gidad ki kahani -


बहुत पुरानी बात है एक तालाब में एक मगरमच्छ और कछुआ रहते थे । उसी तालाब में एक गीदड़ पानी पीने आया करता था। मगरमच्छ ने तालाब की सारी मछलियां खाकर खत्म कर दी अब तालाब में कोई भी मछली नहीं बची थी  मगरमच्छ को खाना न मिलने से अब मगरमच्छ को भूखा रहना पड़ता था ।

एक दिन मगरमच्छ को बहुत तेज भूख लगी थी वह सोचने लगा - "मैंने तो तालाब की सारी मछलियां खाकर खत्म कर दीं, अब मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है । अब क्या खाऊं । एक गीदड़ रोज यहाँ आता था आज वह भी पानी पीने नहीं आया।

कुछ देर बाद कछुआ मगरमच्छ के पास आकर पूछता है- " भाई मगरमच्छ ! आज तुम बहुत उदास लग रहे हो क्या बात है । मगरमच्छ कछुए की बात सुन कर कहता है - " मुझे बहुत तेज भूख लग रही है और खाने के लिए तालाब में मछलियां नहीं बची है । मैं सोच रहा था कि यदि गीदड़ पानी पीने आता तो उसी से अपनी भूख मिटा लेता, किंतु वह तो बहुत चालाक है और यहां पानी पीने नहीं आ रहा है।"

मगरमच्छ की बात सुनकर कछुआ कहता है- " भाई मगरमच्छ ! इस तालाब की सारी मछलियाँ तो तुमने पहले ही ख़त्म कर दी हैं और गीदड़ भी तुम्हारे डर से यहाँ नहीं आता । इसमें भला मैं क्या कर सकता हूँ ?




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मगरमच्छ कछुए से बोला - " भाई कछु तुम तो मेरे परम मित्र हो, क्या ऐसी मुश्किल घड़ी में अपने मित्र का साथ नहीं दोगे । कुछ ऐसा उपाय करो कि गीदड़ खुद पर खुद मेरे पास चला आये ।

कछुआ बोला - " मित्र तुम्हे तकलीफ में देखकर मुझे अच्छा नहीं लग रहा है । मैं कुछ उपाय करता हूं । तुम एक काम करना, मैं किसी तरह गीदड़ को यहां लेकर आता हूं और तुम सांस रोके हुए ऐसे पड़े रहना जैसे कि मर गए हो। "

मगरमच्छ कछुए की बात समझ गया और तालाब में सांस रोके हुए पड़ा था जैसे मार गया हो । कुछ ही देर में गीदड़ वहां से गुजरता है । गीदड़ को देखकर कछुआ जोर-जोर से रोने लगता है । कछुए के रोने की आवाज सुनकर गीदड़ कछुआ के पास आकर पूछता है - " भाई कछुआ! क्या हुआ तुम इतना क्यों रो रहे हो? "

कछुआ बोला -" मेरा मित्र मगरमच्छ अब इस दुनिया में नहीं रहा । मैं उसी की याद में रो रहा हूं।"



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गीदड़ मन ही मन सोचता है कि अच्छा हुआ यह मगरमच्छ मर गया अब मैं निश्चिंत होकर पानी पी सकता हूं । अब मुझे कोई डर नहीं है । तभी कछुआ गीदड़ से कहता है - " चलो भाई गीदड़ इस मगरमच्छ के ऊपर कुछ घास पत्तियां डालकर इसका अंतिम संस्कार कर देते हैं।"

गीदड़ मगरमच्छ के पास जा ही रहा था तभी उसे प्रतीत होता है की मगरमच्छ अभी मरा नहीं है और कछुआ उसे बेवकूफ बना रहा है । कुछ सोचकर गीदड़ कछुआ से बोला -" भाई कछुआ! मैंने सुना है कि मगरमच्छ की पूँछ मरने के बाद भी हिलती रहती है लेकिन इसकी पूछ तो नहीं हिल रही है । लगता है मगरमच्छ अभी मरा नहीं है।"

यह सुनकर मगरमच्छ सोचता है कि अगर मैं पूछ नहीं हिलाऊंगा तो गीदड़ को यह लगेगा कि मैं जिंदा हूं और वह भाग जाएगा । इतना सोचकर मगरमच्छ अपनी पहुंच हिलाने लगता है। मगरमच्छकी पूँछ हिलती देखकर गीदड़ दूर भाग जाता है और कछुए से कहता है- " देखो अपने मित्र को वह जिंदा है । तुम दोनों मिलकर मुझे मूर्ख बना रहे थे । " इतना कहकर गीदड़ वहां से भाग जाता है।

कछुआ मगरमच्छ से झल्लाते हुए कहता है, अपनी आंखें खोल दो गीदड़ तो भाग गया है तुम बिल्कुल मुर्ख हो जो गीदड़ की चाल में आ गए मूर्ख हमेशा मुर्ख ही रहता है।

शिक्षा - बुद्धिमानी से बड़ी से बड़ी कठनाई से बचा जा सकता है ।